क्या ही शानदार नारा है—"बटेंगे तो कटेंगे"—जो भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने की प्रेरणा देता है। लेकिन अगर विभिन्न राज्यों में मौजूदा सांप्रदायिक हालातों को देखा जाए और चुनाव जीतने के लिए जनलुभावन उपायों को ही एकमात्र मंत्र मान लिया जाए, और अगर लाखों समर्थकों के लिए चुनाव जीतना ही अंतिम उद्देश्य बन जाए, तो आने वाले समय में हालात चिंताजनक हो सकते हैं।
यह हैरानी की बात नहीं होगी अगर 2027 तक भारत मणिपुर जैसे संकटों का सामना करता दिखे। आज भले ही कई लोग इसे गंभीरता से न लें, लेकिन इतिहास गवाह है कि हम अकसर विभाजनकारी विचारधाराओं के परिणामों को समय रहते नहीं समझ पाते।
- जब हिटलर ने नफरत फैलाई, तब कम ही लोग आने वाले विनाश की कल्पना कर पाए।
- जब इंदिरा गांधी ने राजनीतिक लाभ के लिए भिंडरावाले को बढ़ावा दिया, तब दरारें पड़ गईं।
- जब भिंडरावाले ने सांप्रदायिक नफरत फैलाई, तो इसके परिणाम घातक साबित हुए।
- जब कश्मीरी कट्टरपंथियों ने अपने पंडित पड़ोसियों को धमकाया, तो इससे न केवल पंडितों को बल्कि मुसलमानों को भी दुख और कष्ट झेलना पड़ा।
- जब जिन्ना ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया, तो इससे न केवल ऐसी गहरी चोटें लगीं जो आज तक बनी हुई हैं, बल्कि इसने पाकिस्तान को धार्मिक कट्टरता और विनाश के रास्ते पर भी धकेल दिया।जब पाकिस्तान ने अपने जिहादियों को "रणनीतिक संपत्ति" कहा, तो हिंसा की विरासत बनी।
- जब सद्दाम हुसैन ने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए, तो पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैल गई।
- जब मणिपुर के न्यायाधीशों ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्देश दिया, तो अशांति भड़क उठी।
- जब उस ऋषि ने ऋग्वेद के मंडल 10, सूक्त 90 में पुरुषसूक्त लिखा, जिसमें यह घोषणा की गई कि ब्राह्मण उनके (पुरुष, अर्थात् विश्वात्मा) मुख हैं, क्षत्रिय उनके भुजाएँ बने, वैश्य उनकी जंघाएँ, और शूद्र उनके चरणों sey utpan huye तब उन्होंने यह नहीं सोचा होगा कि यह समाज के ताने-बाने को भारी क्षति पहुँचाएगा, समाज को विभाजित कर देगा, और इसके दुष्परिणाम हजारों वर्षों तक महसूस किए जाएँगे। यहां तक कि इस विभाजन के कारण समाज अपनी स्वतंत्रता भी खो सकता है।
"बटेंगे तो कटेंगे" जैसा नारा समाज को भटकाने की जबरदस्त क्षमता रखता है। अगर हम सतर्क नहीं हुए, तो अल्पकालिक लक्ष्यों और संकीर्ण स्वार्थों की यह दौड़ हमें उस सपने से दूर कर सकती है, जिसमें हम एक शांतिपूर्ण और विकसित भारत की कल्पना करते हैं।