डोज़र बाबा की तरक़्की से मप्र के मुख्य मंत्री ने भी अपना नाम डोज़र मामा कर दिया।
जो कमाल डोज़र बाबा ने उप्र मे किया वह डोज़र मामा ने खरगोन मे कर दिखाया, और इकबाल सिंह साहब ने दिल्ली मे ।
सारे उनके SUPPORTERS गद गद हो रखे हैं और डोज़र की आरती गा रहे हैं ।
दुनिया मे भी इस कमाल का पुर ज़ोर व्याख्यान हो रहा है।
कहा जा रहा है की भारत देश की कानून स्थति को बनाये रखने के लिए सरकार को अब डोज़र का सहारा लेना पड़ रहा है।
सोचता हूँ की हम अपनी क़ाबलियत का इज़हार कर रहे हैं या न क़ाबलियत का ।
कहावत है पैर पे कुलाहड़ी मारना ,
लगता है की कहीं डोज़र के चकर मे हम कुल्हाड़ी पे पैर न दे मारें ।
बड़े लोग बोलते हैं की जब तर्क ख़त्म हो जाता है तो आवाज़ ऊँची हो जाती है,
और जो ऊँची आवाज़ से भी बात न बने तो लाते घुसें चलाने पड़ते हैं. .
सरकार की नौबत अब यह आगयी है की उसका अब अपने ही तंत्रों से विश्वास उठ गया है तभी तो उसने डोज़र का सहारा लिया है.
और अब लाते घूसों पे उतर आयी है.
मै सोचता हूँ की
क्या लाते घूंसे चलाना सरकार को शोभा देता है
सरकार अपनी क़ाबलियत का इज़हार कर रही है या नाकाबलियत का।